Monday 11 July 2011

कुछ काम राष्ट्रहित में कर लो

जब फूलों के मग पर चलकर

पैरों में छाले उभर पड़ें 

जब स्वर्ग उटल में रहकर भी

स्वगात्र तप्त हो उपल पड़े

हे स्वर्ग पुरुष,तब स्वर्ग छोड़

नीले वितान के नीचे आ

फिर मातृभूमि का रंजन बन

सच्चे सुख का आनंद उठा



जब जीवन अरण्य में भटक-भटक

हो तप्त कहीं गिर जाओ तुम

जब विधुलेखा की चाह लिए

अमावस में ही खो जाओ तुम

तब हे राही अनुताप छोड़

भारत माँ के शरणों में आ

फिर मातृभूमि हित कुछ करके

नरदेही अटल तोष को पा



जब वातायन से झाक-झाक

चक्षु पीतकमल से हो जाएँ

जब अम्भोजनेत्रा के

दर्शन फिर भी ना हो पायें

फिर क्लांत पीत नयनो से तुम

भारत माता का चरण देख

कर जीवन अपना धन्यभाग

निर्जन सुरती को यहाँ फेक



जब झूठे अभिनन्दन गा गा कर

धनमय सारा घर हो जाये

जब स्वर्ग कुटीर में रहकर भी

दुःख की अनुभूति ना जाये

कुछ गीत देशहित में गाकर

सच्चे सुख की अनुभूति लो

कुछ कलम राष्ट्रहित में घिस कर

अपनी लेखनी कृतार्थ करो



(उटल-कुटिया,स्वगात्र-अपना शरीर,वितान-आकाश,रंजन- प्रेमी,तप्त-दुखी,विदुलेखा-चांदनी,अनुताप-दुःख,नरदेही-मनुष्य, तोष-संतुष्टि,वातायन-झरोखा,अम्भोज्नेत्रा-कमल जैसे नयन वाली स्त्री,क्लांत-थके हुए,सुरती-यादें)

पहले यह देश महान हुआ करता था

पहले यह देश महान हुआ करता था

संसार में इसका नाम हुआ करता था
पर अब तो सब उल्टा-पुल्टा होता है
जनता भूखो मरती है,नेता सोता है
सड़ता है अनाज सभी भण्डारो में
पर भनक नहीं है सत्ता के गलियारों में
पहले श्री रामचंद्र आदर्श हुआ करते थे
रावन दुबके-छुपके घुमा करते थे
पर आज हालात बहुत बदतर हैं
राम नहीं हैं,रावन ही दर-दर हैं
सीता दुबकी हैं जंगल,झाड कछारों में
सूर्पनखा का राज सभी गलियारों में
जनता उलझी आश्वाशन के जंजालों में
नेता उलझे हैं खरबों के घोटालों में
राजा-कलमाड़ी जैसों की चांदी है
रामदेव जैसों की बर्बादी है
माया की माया में उलझी जनता है
जनता भूखी,हर तरफ पार्क बनता है
कहता राहुल-हे प्रभु,बचाओ हम सब को
बीते व्यतीत में पंहुचा दो फिर भारत को

एक आह्वान

हे नौजवान आंखे खोलो,भारत माँ तुम्हे पुकार रही.

अपनी मर्यादा रखने को,गंगा-सतलुज ललकार रही.
हर तरफ यहाँ है अनाचार,पापी राजा बन बैठे हैं.
मेहनतकश भूखो मरते हैं,इनके बस जाम छलकते हैं.
राजा,कलमाड़ी-कनिमुडी,अरबों खरबों खा जाते हैं.
पर बारह सौ के वेतन पर,हम सुखी लोग कहलाते हैं.
कहने को हम हैं सवा अरब,पर यही बात चुभ जाती है.
इतने लोगों के रहते भी,एक विदेशन राज चलती है.
अब लालबहादुर कहीं नहीं,हर जगह यहाँ मनमोहन हैं.
निर्विकार से बैठे हैं,इनपर किसका सम्मोहन है?
भ्रष्टाचार ख़तम कर दो,कह जनता जब चिल्लाती है.
आधी रात में जनता पर,सरकार गोली चलवाती है.
रामदेव-अन्ना जैसे को,देशद्रोही ये कहते हैं.
जनता भले चीत्कार करे,ये घर में दुबके रहते हैं.
हम यहाँ चंद रुपये के खातिर,दिन भर मेहनत करते हैं.
पर भ्रष्टाचारी बैठ यहाँ,अपनी तिजोरी भरते हैं.
जब तक दिग्गी जैसे कुत्ते,भोऊ-भोऊ करके चिल्लायेंगे.
तब तक सिब्बल जैसे नेता,जनता की वाट लगायेंगे.
हे मेहनतकश,अब तो समझो,बस यही हमारे शोषक हैं.
ये संघ शक्ति से डरते हैं,ये सिम्मी के परिपोषक हैं.
हे नौजवान बन भगत सिंह,फिर से रणभूमि में आओ.
भारत को पुनः आजाद करो,इस समरभूमि में बढ़ जाओ.

हम तो तलवार उठा बैठे





देख करुण दशा भारत माँ की
हम तो संसार भुला बैठे
खुद शांति का उपदेश दिया
खुद ही तलवार उठा बैठे
गाँधी का सच्चा पूजक था
सबको बस प्रेम सिखाता था
"अहिंसा परमोधर्मः"की
बाते सबको बतलाता था
भारत माता का रुदन सुना
तो जीवन क्रम ही मोड़ दिया
गाँधी की साख बचने को
गाँधी को ही मै छोड़ दिया
जो राम राज्य का सपना था
वो अब कैसे पूरा होगा
जब रावन खुले विचरते हैं
तो कहाँ धरम-करम होगा
सोच अतीत की बातों को
फिर निद्रा से हम उठ बैठे
सपना फूलों के मग का था
पर अंगारों पर चल बैठे
जब पंहुचा घाटी में चल कर
आखों से आशू छलक उठा
जब केशर में बारूद मिला
बंदूकों पर तब आलोक मढ़ा
फिर नमन किया सत्तावन के
उन अगणित वीर जवानो को
फिर नमन किया आजाद-भगत
बिस्मिल जैसे बलवानो को
फिर गाँधी की तस्वीर को
बक्से के अन्दर बंद किया
जिससे वह सदा सुरक्षित हो
फिर ऐसा एक अनुबंध किया
जय -जय कह भारत माता की
इस कुरुक्षेत्र में आया हूँ
कुछ अपनों के संग भी लड़ना है
सो गीता भी मै लाया हूँ... 

क्या लिखूं?


क्या लिखूं?
कलम चलती नहीं उसके बारे में लिखने को
क्या कहूँ उसे?
चाँद का टुकड़ा !
गुलाब की पंखुड़ी!
शीत की चांदनी!
मई की गर्मी!
वह तो ऐसी ही थी
कोई भी उपमा उसके लिए तुक्ष जान पड़ती है
सोचता हूँ उसके बारे में
दिल करता है उसके बारे में कुछ लिखने को
कलम से बांध दूं उसे
लेकिन कैसे संभव है यह?
सागर पर टहलना
हवा को पकड़ना
बहुत कठिन
कठिन ही नहीं असंभव भी
किन्तु दिल नहीं मानता
मज़बूरी को नहीं पहचानता
कुछ कहना चाहता है
तो चाँद कहूँ?
नहीं नहीं
यह बेइज्जती होगी
सावन के घटा की तरह उसके बालों की
सूरज की तरह चमकते ललाट की
गुलाब की तरह उसके होठों की
यह बेइज्जती होगी
उसकी सांगीतिक आवाज़ की
झील की तरह उसकी आँखों की
मोरनी की तरह उसकी चाल की
तो क्या कहूँ?
उसके समान वाही है
यही बात सही है
तो छोडो
क्या लिखूं?

हे आर्यपुत्र फिर से जग जा




हे आर्यपुत्र फिर से जग जा,
अपनी अवनी चीत्कार रही
हे वीर पुत्र कोदंड उठा,
धरती माता पुकार रही
बन खंडपरशु ,बन भृगुनंदन,
ले परशु हाथ,आ चल रण में
संधान दुबारा वह नराच,
दुश्मन जिससे थर-थर कापे
दे त्याग विदेहन की इच्छा,
शिव से वह उत्तमगाथ मांग
जिससे तम मिट जाये जग का,
विमलापति से वह हास मांग
फिर छेड़ समर भारत भू पर,
असुरों को मार भगा दे तू
भारत!भारत को भारत कर,
रावन लंका पंहुचा दे तू
तू अर्जुन बन गांडीव उठा,
दिखला दे इस कौरव दल को
पूरा भारत कुरुक्षेत्र बना,
सिखला दे इस राक्षस बल को
बन वीर शिवाजी मुगलों को,
अतीत की झलक दिखा दे तू
बन भगत सिंह बन्दूक उठा,
खुद की पहचान बता दे तू
तू रामचन्द्र,तू ही शंकर,
तू अन्धकार को तरनी है
तू सत्य सनातन का रक्षक,
ये भारत तेरी जननी है
तुझपर इसके अहसान बड़े,
हे आर्य पुत्र तू समझ इसे
इसकी रक्षा से रक्षा है,
हे वीर पुत्र अब रण कर दे

तौबा तेरे सोलह साल



अल्हड़ नदी की धवल धार सी
अविरल जब तू मुस्काती है
बात-बात में गुस्सा करती
चलती-चलती इठलाती है
देख रूप सौंदर्य तुम्हारा
जग सारा हो गया निहाल
तौबा तेरे सोलह साल
मोती जैसे दांत तुम्हारे
कोयल जैसी बोली
रंग विरंगे वासन तुम्हारे
जैसे हो रंगोली
मृगनयनी तेरी चितवन से
कामदेव भी हुए बेहाल
तौबा तेरे सोलह साल
लट ऊँगली में जब उलझाती
लगे मेघ क्रीड़ा विमग्न हो
केशो में ही उलझ गए हों
पवन वेग से व्याकुल होकर
आतुर हैं स्वछन्द विचरण को
रोक रहे माया से बाल
तौबा तेरे सोलह साल
तेरी हर एक अदा निराली
मृग्सवाक सी आँखे काली
हिमकण जैसा रंग तुम्हारा
भानुसुता सी पहने बाली
जब पायल खनकाती पैरों में
ढोल-गीटार भी लगे बेताल
तौबा तेरे सोलह साल
हंससुता सी गर्दन तेरी
रति के जैसा चितवन
खुश होती तो ऐसे लगता
खुश हैं जग के कड़-कड़
उपमा किससे करूँ तुम्हारी
तुम ही तुम हो,सरे ब्याल
तौबा तेरे सोलह साल
हे विश्वसुन्दरी राहुल को
सपने में दरस दिखा जाना
पूरे जीवन के योग्य नहीं
पल दो पल साथ बीता जाना
कह देना मित्र हिमांशु से
योगी का क्या हो गया हाल
तौबा तेरे सोलह साल
 

मै हिन्दू हूँ,मै हिंदू हूँ

मै आदि धर्म का रखवाला
जग को पथ दिखलाने वाला
वेदों के मंत्रो से गुंजित
दुनिया को कर देने वाला
मै परिचय का मोहताज नहीं
हर जगह हमारे चिन्ह पड़े
कोई पत्थर-कोई तिनका
हर जगह हमारे राम खड़े
नदिओं में माता को देखा
कंकड़-कंकड़ में शंकर को
पूरी बसुधा कुटुंब अपना
कह बना लिया अपना सबको
मेरे श्रीराम ने नहीं कहा
आओ सब मेरी राह चलो
बस यही कहा-बस यही कहा
मानव-मानव का भला करो
कब शस्त्र लिए हाथों में मै
निर्दोषों का संघार किया
बनवाने को हिन्दू सबको
कब अपनी सीमा पार किया
कब अरब-सीरिया में जाकर
मंदिर बनवा मस्जिद तोडा
कब काफ़िर-काफ़िर कह कर के
खंजर लेकर के मै दौड़ा
मै तो बस प्रेम सीखाता हूँ
मै तो बस दया दिखाता हूँ
पथ से भटके हर राही को
मै तो बस राह दिखाता हूँ
मै हिन्दू था,मै हिन्दू हूँ
मै हिन्दू बना रहूँगा भी
जीव मात्र से प्रेम किया
करता हूँ और करूँगा भी
मै राम भी हूँ,मै कृष्ण भी हूँ
मै नानक भी मै गौतम भी
मै महावीर का महाबचन
मै शंकर का दावानल भी
मै शांति का उपदेशक हूँ
मानवता का मै रखवाला
सज्जन के दिल की मै धड़कन
दुर्जन को अग्नि की ज्वाला
अर्जुन को पार्थसारथी मै
पर मेघनाथ को लक्ष्मन हूँ
मै कान्हा की प्यारी वंशी
श्रीराम का मै सर-सायक हूँ
रग-रग में बसा सनातन है
सासोंमे बसा सनातन है
मै तो बस इसका पूजक हूँ
यह आदि-अनंत-पुरातन है
यह महाज्ञान का महासिंधु
मै तो बस इसका विन्दु हूँ
भटके को पथ दिखलाता हूँ
मै हिन्दू हूँ,मै हिंदू हूँ.

क़ब तक?


कितना रक्त बहाना होगा,अपनी ही इस धरती पर
कितने मंदिर फिर टूटेंगे,अपने इस भारत भू पर
उदासीन बनकर क़ब तक हम,खुद का शोषण देखेंगे
क़ब तक गजनी-बाबर मिलकर भारत माँ को लूटेंगे
क़ब तक जयचंदों के सह पर,गौरी भारत आएगा
रौंद हमारी मातृभूमि को,नंगा नाच दिखायेगा
बहु बेटियां क़ब तक अपनी,अग्नि कुंड में जाएँगी
अपना मान बचने हेतु,क़ब तक अश्रु बहायेंगी
क़ब तक काशी और अयोध्या,हम सब को धिक्कारेंगे
क़ब तक मथुरा की छाती पर,गजनी खंजर मारेंगे
कितनी नालान्दाओं में निशिचर,वेद पुराण जलाएंगे
कितना देखेंगे हम तांडव,क़ब तक शीश कटायेंगे.


जागो 




हे हिन्दू राष्ट्र के अनुयायी!जागो रणभूमि में आओ
गाँधी के खादी को फेको,बन्दूक उठाओ बढ़ जाओ
पहले धुड़ो जयचंदो को,जो अपने बीच छिपे बैठे
सर्व धर्म समभाव कहे,पर हिन्दू धर्म से द्वेष करें
फिर धुड़ो उन मैकालों को,जो हज पर सब्सिडी देते हैं
पर अमरनाथ की यात्रा पर,हिन्दू से जजिया लेते हैं
फिर भेजो पाकिस्तान उन्हें,जो भारत भू का खाते हैं
जो पैसा यहाँ कमाते हैं,पर गुण मुल्तान के गाते हैं
फिर आओ चले अयोध्या में,मंदिर का पुनरोद्धार करें
मथुरा-काशी के अंचल में भी,आदि धर्म का रंग भरें
कर धरती साडी असुरहीन,भगवा झंडा को फहराएँ
जय-जय श्रीराम का नारा दे,फिर हिन्दुकुश तक बढ़ जाएँ
फिर कोई गजनी की औलाद यहाँ,इतिहास नहीं दोहराएगा
कोई जयचंद दुबारा से न,माँ की लाज लुटायेगा

श्रीराम काज को करने को

तन-मन-जीवन तुम्हे समर्पित,
राम कृपा के सागर हो!
तुमने दिया हमें है सबकुछ,
राम कृपा के सागर हो!
तोड़ेंगे सारी सीमा को,
जिससे प्रभु का काज बने,
मुक्त करेंगे जन्मभूमि को
जिससे मंदिर भव्य बने
राम काज को हिन्दू का
हर बच्चा-बच्चा आएगा
कर विध्वंश राक्षसों का
भगवा झंडा फहराएगा
हो सावधान बाबर-गजनी
औरंगजेब की औलादों
फिर रामभक्त आने को हैं
नव विजय कथा को लिखने को
कर विनाश राक्षस कुल का
श्रीराम काज को करने को.

आज फिर वो चाँद आया


आज फिर वो चाँद आया
आज फिर वो चाँद आया
पीत सी काया लिए है
निशा में आभा बिखेरा
चल पड़ा निज मार्ग में वह
डालता अम्बर में डेरा
सरहदों को तोड़ता वह
बन्धनों को तोड़ता वह
शांति का श्लोक पढता
प्रेम का पैगाम लाया
आज फिर वो चाँद आया
आज फिर वो चाँद आया
शीत की रजनी में सहता
ठण्ड की सी ठण्ड कप-कप
ग्रीष्म की उस निशा में भी
मार्ग में बढ़ता है अविचल
मधुर सा सपना संजोये
सुबह को वह लक्ष्य पाया
आज फिर वो चाँद आया
आज फिर वो चाँद आया
तोड़ धर्मो की सीमाएं
तोड़ मुल्कों की सीमाएं
सामने दुनिया के फिर वह
शांति का पैगाम लाया
आज फिर वो चाँद आया
आज फिर वो चाँद आया

आये गर्मी के प्यारे दिन



आये गर्मी के प्यारे दिन
सब लोगों का तन-मन डोला
आग सरीखा तपता सूरज
लगता जैसे आग का गोला
मोती के दानो से जल कड़
पूरे शारीर पर छ जाये
आये पंखे-कूलर के दिन
हवा सभी के मन को भाए
शाम समय गंगा के तट पर
फिर से आये सभी नहाने
पुरे दिन झेली गर्मी से
एक बार छुटकारा पाने
रात हुई,कुछ छत पर बैठे
कुछ पेड़ों के नीचे सोते
गर्मी से व्याकुल हो बच्चे
रात-रात भर जगते रोते
इतने दुःख के बावजूद भी
गर्मी मुझको भाती है
आखिर ऐसा हो भी क्यूँ न
छुट्टी जो ये लाती है.

भारत भूमि



यह पुण्यभूमि भारत भूमि
सारी दुनिया से न्यारी है
जहाँ पुरुष सब धर्म रूप हैं
देवी हर एक नारी है
यही जनम लेकर गौतम ने
प्रेम पंथ सिखलाया था
सत्य,अहिंसा,पर सेवा का
सबको पथ पढाया था
यहीं से जन्मा आदि धर्म जो
हिन्दू धर्म है कहलाया
जीव मात्र से प्रेम करो तुम
जिसने सबको सिखलाया
जैन धर्म और सिक्ख धर्म की
जन्मभूमि यह धर्म भूमि है
नानक जैसे शत संतों की
भारत भूमि यह कर्म भूमि है
यही थे जन्मे वीर शिवाजी
जिसने सबको दिखा दिया था
हम लोगों में कितनी शक्ति
मुगलों को तो रुला दिया था
गाँधी,सुभाष,टैगोर,तिलक
सब इस भूमि के बेटे थे
इसकी छाती पर खेले थे,
इसकी छाती पर लेते थे
फिर हमने भी तो जन्म लिया है
ऐसी पावन धरती पर
तो ऐसा काम करें मिलकर
जिससे रोशन हो दुनिया भर.

संकल्प



मै अपना जीवन आज समर्पित करता हूँ
अपने इस मातृभूमि के कोमल चरणों पर
बदहाली को खुशहाली में अब बदलूँगा.
अपने जीवन को इसपर मै न्योछावर कर
नेताओं पर से जनता का विश्वाश उठा
सबको अब आज़ादी की पाठ पढ़ाऊंगा
जिससे भारत में फिर से खुशियाँ आ जाएँ
हिंदुत्व संग्राम को वही दिशा दिखलाऊंगा
मै आज.इसी क्षण ,अभी प्रतिज्ञा करता हूँ
'गुरूजी' के सुन्दर सपनो को सजाऊंगा
जिससे भारत में पुनः रामराज्य आये
सबलोगों को अब वही राह दिखलाऊंगा
गंगा यमुना के इस पवन धरती पर
समता-एकता की सुन्दर फसलें बोऊंगा
जब तक भारत अतीत में नहीं पहुच जाये
आजीवन तब तक कभी न सोऊंगा
आओ मेरे हिंदुत्व के प्यारे रखवालों
साथ-साथ मिल एक फौज बनाये हम
अपने इस मातृभूमि को जान समर्पित कर
भूल जाएँ जीवन का अपने सारा दुःख गम
तुम अगर आज भी शांत-शांत ही बैठोगे
माता की अंचल खूनो से भीग जाएगी
फिर चाहे जितना भी मेहनत करके थक जाओ
अपने भारत में पुनः गुलामी आयेगी
तुम इसी वक़्त अब क्रांति का उद्घोष करो
सत्ता को छीनो मुठ्ठी भर इन लोगों से
जो हमारे सर पर चढ़ कर सत्ता पते हैं
इन भारत भू को लुटने वाले चोरों से
सब एक ही पेड़ की अलग-अलग शाखाएं हैं
इनपर भूल कर विश्वाश न करना तुम
हमलोगों को फुसलाकर गद्दी पाते हैं
सावधान गद्दी चोरों से रहना तुम
यह लोकतंत्र या भ्रष्टतंत्र का शाशन है
स्पस्टतया देखो तुम मिल-मिल कर के
योग्य गरीबों के बच्चे क्या करते हैं
तुलना करो नेताओं के तुम बच्चों से
हम मेहनत करके इतनी फसल उगाते हैं
फिर भी अपने ये सरे बच्चे भूखें हैं
फिर तुलना करो नेताओं के उन बच्चों से
जो हम सबके रक्त को पीकर जीते हैं.

हर कुत्ते का दिन आता है



असफलताओं को छिपाता हुआ
बढ़ता रहा इस आस में
कभी तो करूँगा आलिंगन
सफलता का जी भरके

वीरानियो को चीरते हुए
दौड़ता रहा हर मार्ग पर
कहीं तो कड़ी होगी मंजिल
पुष्प लेकर स्वागत में

सन्नाटे की शोर को
तोड़ता रहा चिल्ला-चिल्ला कर
कभी तो कोई सुनेगा
और कहेगा तुम्हारी मंजिल यहाँ है

गीता पढ़ा-कुरान पढ़ा
हर लोगों का आख्यान सुना
कोई तो बताएगा
आखिर ईश्वर कौन है

संस्कारों को पस्चिमियत में बहाया
जिन्दगी को फिल्मो में बहाया
इंतजार करता रहा उन पलकों का
जो देखकर कहें-"तुम बहुत अच्छे हो."

दान दिया,जकात किया
परमार्थ पर जिन्दगी वार दिया
कान खोलकर घूमता रहा
कोई तो कहेगा-"यशस्वी भवः."

पर कुछ नहीं मिला इस जिन्दगी से
सिवाय गम के
पर पता नहीं क्यूँ ऐसा लगता है
"हर कुत्ते का दिन आता है."

प्रार्थना



हे सत्य सिन्धु सदगुणों के सागर
तेरी भक्ति को मै पाकर
दीन जानो का रक्षक बनकर
तेरे नियमों में ही रहकर
मुझको दो आशीर्वाद प्रभु
अपना कर्तव्य निभाऊ मै
सच्चा हिन्दू कहलाऊ मै
दो यह आशीष,न झुके शीश
मरने का उर में न डर हो
कर्त्तव्य लक्ष,साहस ही मित्र
लोगों का ह्रदय मेरा घर हो
मै वीर महा रणधीर बनू
लेकिन न सस्त्र हाथों में हो
मै सच्चाई को बोल सकूँ
पर कटुता न बातों में हो
हिंदी मेरी भाषा हो
हिन्दू मेरा धर्म रहे
हो भारत मेरी कर्मभूमि
हिंदुत्व की रक्षा कर्म रहे
बन आदि धर्म का सेवक मै
तेरी चरणों में पड़ा रहूँ
जो दया-प्रेम सिखलाते हैं
उनको मै सतत प्रणाम करूँ

क्या होगा कल,सोचा है कभी तुमने?



रात की खामोशियों को चीरती हुई
एक आवाजहीन धमाके की आवाज़
जिसमे न कोई शब्द है न शोर
हिला देती है दिल की दीवारों को मिलो तक
कुछ यादें व्यतीत से,कुछ अनबीते व्यतीत से
पूछती हैं मुझसे अकेले में
क्या होगा कल?
सोचा है कभी तुमने
कुछ सपने जो पाले थे खुद ने खुद के लिए
अपनों के कुछ,कुछ अपनों के अपनों को
उनका क्या होगा?सोचा है सपने भी?
सपने ही सपनो को सपने बनाते हैं
सोचो इन यादों के हिलते विरानो में
क्या होगा कल,सोचा है कभी तुमने?
सोचो,न सोचोगे ये सोची बातें
तो सोचे भी,सोचों में ही बदल जाएगी
वो सपने,वो अपने,वो अपनों के सपने
नींद खुलते ही विस्तार में सिमट जाएँगी.
फिर क्या होगा?
कहाँ किस तरह रहोगे?
क्या होगा कल,
सोचा है कभी तुमने?



ह से हिन्दू,ह से हिंदी,ह से हिंदुस्तान है
ह से हरि हैं,ह से हर हैं,हरी-हर अपने प्राण हैं
ह से हर-हर महादेव की बोली हमने बोला है
ह से हरि का काज कारन को
हर हिन्दू मन डोला है
हम ही हिंदी,हम ही हिन्दू हम ही हिंदुस्तान हैं
दुनिया को समता सिखलाता,हिन्दू धर्म महान है
हरि-हर की कृपा से जो प्रण,हर हिन्दू ने ठाना है
हम हिन्दू,हिंदुत्व की ताकत,हमे लक्ष्य को पाना है
जन्मभूमि पर विशाल मंदिर,हर हिन्दू की चाहत है
विधार्मिओं के इस कुकृत्य से,हर हिन्दू मन आहत है
हरि-हर अपने पूज्य देवता,हिंदी अपनी शान है
हिंदुत्व जीने का जारिया,भारत राष्ट्र महान है
हर हिन्दू,हरि-हर का पूजक,हमे जान से प्यारा है
हुम तो हैं दुनिया के रक्षक,रक्षा संकल्प हमारा है
हर गली गली हर,हर डगर-डगर
हर गावं-गावं,हर शहर-शहर
केशरिया बाना पहन-पहन
बच्चा-बच्चा हर हिन्दू का
हरि-हर की बोली बोलेगा
विधार्मिओं की ताकत को वह
तलवारों से तोलेगा.

तितली रानी



रंग विरंगे पंखो वाली
पिली लाल हरी और काली
परी देश की राजकुमारी
तुम कितनी लगती हो प्यारी
उडती जब तुम असमान में
बच्चे होते ख़ुशी लान में
दौड़-दौड़ कर तेरे पीछे
कहते सभी मधुर सब्दों में
सबकी सुन्दरता है पानी
देखो आ गयी तितली रानी
जब तुम फूलों पर बैठती
कलियाँ मचल-मचल इठलाती
पौधे झूम-झूम कर गाते
हवा प्रेम संगीत सुनाती
कहती तितली रानी आओ
हम सब नाचे झूमे गाएं
दुनिया के इन सब लोगों को
प्रकृति का सन्देश सुनाएँ
छोड़ आपसी मार-काट को
प्रकृति में तुम घुल मिल जाओ
सबको प्रेम की राह दिखाकर
जीवन का असली सुख पाओ

रामसेतु की कहानी



त्रेता युग में धरती पर जब
राक्षस कुल का उत्पात हुआ
ऋषिओं में व्याकुलता छाई
धरती को भी संताप हुआ
ले साथ पूज्य देवों को तब
वह श्री विष्णू के पास गयी
वसुधा पर असुर कुशाशन का
रो-रो कर सब वृतांत कही
"हे दया सिन्धु अवनी पर अब
असुरों का शाशन चलता है
स्त्री,गोउ, ब्रह्मण की हत्या
हर जगह निशाचर करता है
करुनानिधन करुना करके
हम सब का अब उद्धार करो
धर्म राज्य स्थापित कर
मेरा सारा संताप हरो"
सुन करुण विनय अवनी का तब
करूणानिधि ने हुँकार किया
कर दूंगा धरती असुरहीन
सब लोगों को यह वचन दिया
फिर लिया जन्म धरती पर तब
दशरथ को सुत सौभाग्य मिला
अयोध्या में खुशियाँ छायीं
असुरों का सब साम्राज्य हिला
*************************
हो गया शुरू फिर महासमर
श्रीरामचन्द्र का असुरों से
हो गया अंत राक्षस कुल का
तब सारे ही भारत भू से
असुरों का राजा रावण था
जो लंकापुर में रहता था
बैठे-बैठे लंकापुर से
धरती पर शाशन करता था
श्रीराम चले तब लंका को
ले सेना बानर रीछ्हों की
बनवाया सागर में सेतु
मिट गयी दूरियां बीचों की
फिर युद्धभूमि में रावण भी
श्रीरामचंद्र से हारा था
रावण संग सारे असुरों को
श्रीरामचंद्र ने मारा था
धरती का फिर उत्थान हुआ
सब धर्म-कर्म फिर शुरू हुए
वेदों के मंत्र गूंजने लगे
पूजनीय गोउ-गुरु हुए
**************************

रावन संहार्थ जो महासेतु
श्रीरामचंद्र ने बनवाया
कलयुग के बढे राक्षसों से
उसपर भारी संकट आया
होगा विकाश,समृद्ध राष्ट्र
कहकर राक्षस चिल्लाएं हैं
हिंदुत्व कुचलने के खातिर
सब सीने पर चढ़ आये हैं
तुडवाने को श्रीराम सेतु
राक्षस कुल ने उत्पात किया
हिन्दू राष्ट्र भारत में रह
हिंदुत्व रक्त का घड़ा पिया
कहते हैं राम कल्पना हैं
रामायण केवल सपना है
दुनिया चाहे जो कुछ बोले
श्रीराम सेतु टूटना है
कुछ राक्षस कलम उठा करके
नयी रामायण लिखते हैं
श्रीराम को मदिरा का सेवक
कमी-लोभी तक कहते हैं
"करूणानिधि" रावन सा बनकर
हर तरफ यही चिल्लाया है
राम एक व्यभिचारी था
यह सेतु नहीं बनवाया है
समझो हिंदुत्व के रखवालों
चाल हिंदुत्व कुचलने की
लो खड्ग हाथ,सब साथ-साथ
यह समय रामेश्वर चलने की
मुह से अब जय श्रीराम कहो
".........."का गर्दन काटो
राक्षस कुल के "...." से अब
यह सारा समरभूमि पाटो
हर हिन्दू बन श्रीरामचंद्र
कर धनुष-बन-तरकस लेकर
धर्मार्थ कार्य अब निकल पड़ो
अरमानो की आहुति देकर
यह सही समय है रामहेतु
सब कुछ न्योछावर करने का
श्रीराम हेतु कर धनुष लिए
युद्धभूमि में बढ़ने का
यह वक्त न आयेगा फिर से
निकलो अब सब अपने घर से
कर दी हमला ऐसा प्रचंड
हो जाये सत्रु खंड-खंड
केवल यह है संबाद नहीं
केवल यह है उन्माद नहीं
यह राष्ट्र धर्म है स्रेस्थ धर्म
इसपर कोई विवाद नहीं

आह्वान



अपनी धरती-अपना अम्बर
अपनी नदियाँ-अपना सागर
अपना प्यारा भारत महान
मुह से बोलो अब जय श्री राम
करुनानिधान का महासेतु
जिसको श्रीराम ने बनवाया
बानर रीछो से शिला मंगा
नल-नील दे जिसको जुड्वाया
हम हिन्दू जिसके पूजक हैं
जिसकी महिमा जग न्यारी है
कलयुग के रावन के सह पर
उसको तोड़ने की तैयारी है
इससे पहले हो महाप्रलय
करुनानिधान हमसे रूठे
आस्था पर चोट करे पापी
"करूणानिधि" द्वारा पुल टूटे
हिन्दू जागो,लो खड्ग संग
कर पापी का अभिमान भंग
भगवा झंडा-भगवा पगड़ी
ले अस्त्र-शस्त्र शुरू करो जंग.

पहल



जय सत्य धाम-जय जय श्री राम
जय दीनबंधु,जय पूर्ण काम
जय महादेव,देवाधिदेव
जय भूतनाथ,जय एकमेव
जय जयति-जयति जय भद्रकाली
खप्पर धारी जय शूल वाली
जय-जय दुर्गे शेरावाली
जय महिष सत्रु माता काली
दो शक्ति अपरम्पार हमे
जिससे स्वलक्ष्य पर बढ़ जाएँ
कर नाद ह्रदय से जय श्री राम
अवधेश का मंदिर बनवाएं
केशरिया झंडा हाथ लिए
हम हिन्दुकुश पर चढ़ जाएँ
जय जय श्री राम कह दुनिया में
हिंदुत्व का झंडा लहराएँ
काशी में जो अपमान हुआ
शिव मंदिर तोड़ बना मस्जिद
मथुरा में जो शैतान जगा
मस्जिद बनवा पूरी की जिद
ताजेश्वर महादेव मंदिर
जो बना हुआ है ताज महल
हिंदुत्व कुचलने कोशिश
जिसकी म्लेक्ष्हों ने किया पहल
नापाक इरादे हम तोड़ें
हिन्दू-हिन्दू का दिल जोड़ें
दो इतनी क्षमता हमे प्रभु
स्वधर्म हेतु समर छेड़ें
अपमान हमारा छट जाये
ललकार से सत्रु हट जाये
फिर आदि भूमि,भारत भूमि
हिंदुत्व के रंग में रंग जाये
हर बच्चा-बच्चा ख़ुशी रहे
गलिओं में गूंजे रामायण
हर मन में हर-हर महादेव
हर जिह्वा श्रीमान्न्नारायण
मंदिर में गुंजन घंटो की
मन में भक्ति की धार बहे
दुनिया में बस हों शांति प्रिय
हर जिह्वा जय श्री राम कहे 

अतीत



सीसे के मानिंद टूटते हुए
अतीत को देखा मैंने अपने सामने ही
पहले घर से समुदाय,समुदाय से गावं बनते थे
पर अब तो राज्य से राज्य
देश से देश
घर से घर बनते हैं
कहाँ गया वो अतीत?
शायद वह भी अतीत ही बन गया
बिना गुजरे हुए मेरे सामने से
संयुक्त परिवार कल्पना बन गया
रह गईं बस टूटी फूटी यादें
जो अस्तित्व ख़तम होते देख कराह रही हैं

पर बनारस कभी न बदला



धरती बदली,सागर बदला
नारी बदली,नर भी बदला
मलयांचल की पवने बदली
हिंद महासागर भी बदला
बदल गयी है सभी हवाएं
बदल गई हैं सभी दिशाएं
बदल गया मानव स्वभाव भी
पे बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला
गलियां वैसी की वैसी हैं
नदियाँ वैसी की वैसी हैं
गंगा की लहरों की मचलन
अब भी वैसी की वैसी है
मणिकर्णिका का घाट वही है
सारनाथ का नाथ वही है
महादेव की बोल वही है
बाबा विश्वनाथ वही हैं
सोचे बदली-चाहत बदला
पर बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला
चौराहों पे साड़ वही है
बात-बात में रार वही है
घंटो की गुंजन भी वैसी
वरुण में भी बाढ़ वही है
वही लोग हैं वही दुकाने
वही राह हैं-वही मखाने
वही भंग का अद्भुत गोला
बम-बम केते वही दीवाने
शाशक बदला-शाशन बदला
पर बनारस कभी न बदला
कभी न बदला-कभी न बदला

स्वर्ग को देखा मैंने



आज स्वर्ग को देखा मैंने
अपनी कल्पनाओ से एकदम विपरीत
अस्तित्व के लिए तड़पते हुए
स्वर्ग
धरती का स्वर्ग
कश्मीर कहतें हैं जिसको
पढ़ा था पुस्तकों में जिसको
जिसकी अनंत सुन्दरता को
देखा उसको मैंने आज
नज़दीक से छूकर
वर्फ आज भी थी
वह पिघ्हल कर अशुओं की तरह बह रही थी
पुस्तकों में पढ़े हुए वाही शेब के बाग
पर उनमे वो मिठास कहाँ?
वाही डल-झेलम के सिकरे
पर वो भी डर-डर कर चल रहे थे
फूलों में सुगंध आज भी थी
पर बारूद की
स्वर्ग को देखा मैंने
जो स्वर्गत्व को छोड़कर मुर्दों की तरह खड़ा था.
पुराने दिनों को सोचकर रोना उसकी जिन्दगी बन गई.

मजदूर



अस्थि-चरम में भेद नहीं,कर लिए फावड़ा बाध माथ.
उर लिए लालसा मधुर-मधुर,धरती सपूत चल दिए साथ.
तोडा पत्थर,तोडा पहाड़,गिरते मोती से सीकर बूँद.
पर लगन विजय को पाने की,पाने को प्रतिफल सहित सूद.
गर्मी की तपती धरती पर,थोड़े पैसे की चाहत में,
थोड़ी सुविधा सब लोगों को,थोड़े पैसे की लालच में,
कर रहे काम जी भर-भर के,धरती माँ के सच्चे सपूत,
अग्नि से आग बुझाते हैं,ये वीर पुत्र धरती सपूत

एक सिक्का



रोड पर बैठे हुए,
हाथ में खाली कटोरा
बन दया का पात्र जग में,
वह धूप में बैठा हुआ था.
रास्ते पर चहल कदमी,
कम नहीं तो अधिक भी ना.
मई की उस तीक्ष्ण गर्मी में,
था मैंने उसको देखा.
देख कर पहली नज़र में,
आदमी कहना कठिन था.
बना ढाचा अस्थिओं का,
मार्गिओं को देखता वह.
लोग आते,लोग जाते.
पर न कोई देखता था.
वह करून चीत्कार करता.
पर न कोई सोचता था.
जब कोई गुजरा बगल से,
आशनाई साथ आई.
पर क्षणों को बितने पर,
आँख में आई रुलाई.
मैभी गुजरा उस डगर से,
ढक बदन को बासनो से.
सेख उसको दया आई.
फेक दिया एक रुपिया.
पर मुड़कर दुबारा,
उसकी तरफ मैंने न देखा.
पैसा उठाया न उठाया,
इसकी मुझे चिंता नहीं थी.
चला आया घर पर अपने,
मुह धो पंखा चलाया.
ले मजा शीतल पवन का ,
खाना खाकर सो गया मै.
शाम को जब नींद टूटी,
घडी ने रहा पांच बजाया.
शाम का अख़बार लेकर,
द्वार से हाकर पुकारा.
लिए पेपर बढ़ चला मै.
सरसरी नज़रों से देखा.
पढ़ खबर मृत भिखारी की.
दिल में मेरे हलचल मची थी.
एक रूपए फेककर मै,
मार्ग में आगे बढा था.
लुढ़ककर वह काल सिक्का,
सड़क के था मध्य पंहुचा.
सिक्के की लालच,
सड़क पर उसे खीच लाई.
कुछ क्षणों के बाद में ही,
तेज़ गति मोटर तब आई.
मार दी टक्कर उस,
वह की जंग जीता.
पर ये घटना आज भी मेरे,
उर को शालती है..